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Tughlakabad

तुगलकाबाद


Tughlakabad

1320 में, रक्त-रंजित तख्ता पलट की घटना में खुसरो शाह ने खिलजी शासन को हथिया लिया था। उसी वर्ष मुलतान के सैन्य गवर्नर के विरोझ के बावजूद ग्यासुद्दीन तुगलक शाह-I दिल्ली का सुल्तान बन गया था। तुगलकों ने अपना स्वयं का नगर बसाया जिसे तुगलकाबाद के नाम से जाना जाता है। तुगलकाबाद दिल्ली के अतीत के संघर्ष और उस युग के आतंक तथा साहस के याद की एक निशानी है। खुसरो खान के कत्ल के बाद ग्यासुद्दीन सिंहासन पर बैठा। खुसरो खान भी रक्तपात के बाद ही तख्ता-पलट करके सिंहासन हासिल कर पाया था। ग्यासुद्दीन तुगलक ने मंगोलों के क्रमण से बचने के लिए विरोधियों के कटे हुए सिरों का पिरामिड बनाया और वह इन्हें मारने के लिए हाथियों का उपयोग करता था। मोहम्मद-बिन-तुगलक ने सात वर्ष के शासन के बाद अपनी राजधानी को दक्षिण के औरंगाबाद जिले के दौलताबाद देवगिरी में स्थानांतरित किया था। दौलताबाद में जल की कमी हो गई और जनसाझारण को कष्ट हुआ। अपनी गलती की अनुभूति के बाद उसने दोबारा 1334 में अपनी राजधानी दिल्ली में स्थानांतरित कर दी। अपनी प्रजा के दुखों को दूर करने के लिए उसने एक नया नगर जहांपनाह बसाया जो महरौली और सीरी के मध्य स्थित था। जहांपनाह अर्थात् 'विश्व का पनाहगाह' । वह परित्यक्त तुगलकाबाद में लौटने को इच्छुक नहीं था क्योंकि वह इसे अभिशप्त शहर मानता था। पुरानी कहावत है कि किला इसलिए छोड़ दिया गया था कि क्योंकि संत शेख निज़ामुद्दीन औलिया ने अभिशाप दिया था, क्योंकि ग्यासुद्दीन ने उन्हें यहां बावली बनाने से रोक दिया था। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि यह शहर गुजरों द्वारा बसाया जाएगा या खाली ही रह जाएगा। एक दुर्घटना में ग्यासुद्दीन की मृत्यु हुई था। तुगलक काल में अनेक भवनों का निर्माण हुआ। तुगलकों ने अपनी स्वंय की वास्तुकला का विकास किया। जिसके प्रतिनिधि उदाहरण तुगलकाबाद किले, बड़ी मंज़िल अथवा कालू सराय और बेगमपुर गांव के बीच बिजय मंडल, खिड़की मस्जिद, मालवीय नगर-कालकाजी रोड पर चिराग गांव में चिराग़-ए-दिल्ली की दरगाह के रूप में देखे जा सकते हैं।.

 

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