शाहजहानाबाद
हुमायूं की दिल्ली के समय से लेकर शाहजहां के सिंहासन ग्रहण करने तक दिल्ली को जैसे ग्रहण लग गया था, महान मुगल निर्माता शाहजहां ने 1648 में शाहजहानाबाद के रूप में दिल्ली के सातवें शहर का निर्माण करवाया। शाहजहां की दिल्ली, पहले निर्मित दिल्लियों की तुलना में अधिक दृष्टव्य है। शाहजहां ने बड़े स्तर पर निर्माण कार्य करवाया, जैसा कि लाल किला और जामा मस्जिद के उदाहरण देखे जा सकते हैं। महल (लाल किला - वर्तमान समय में विश्व विरासत वाला स्मारक) के महत्व को दीवान-ए-खास में प्रसिद्ध शेर के रूप में बयान किया गया है:
अगर फिरदौस बा रुए ज़मीन अस्त
हमीं अस्त-ए हमीं अस्त-ए हमीं अस्त-ए।
यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो वो यही है, यही है, यही है।
प्रसिद्ध शायर मिर्ज़ा ग़ालिब ने इसी सुरुर को कायम रखा और लिखा: "यदि दुनिया शरीर है, तो दिल्ली आत्मा है"। एक शहर के लिए इससे बेहतर प्रतीक नहीं हो सकते।
शाहजहानाबाद चारदीवारी वाला शहर था, और इसके कुछ दरवाज़े और दीवार के कुछ हिस्से अभी भी मौजूद हैं। दिल्ली के बाज़ारों का लगाव अपने चरम पर चांदनी चौक और इसकी गलियों में अनुभव किया जा सकता है। शाहजहानाबाद को लगभग दस किलोमीटर लंबी दीवार से सुरक्षा प्रदान की गई थी। दस द्वार शहर को आसपास के क्षेत्र से जोड़ते थे। दिल्ली गेट के अलावा लाल किले में प्रवेश के लिए लाहौर गेट मुख्य प्रवेश द्वार था। कश्मीरी गेट, कलकत्ता गेट, मोरी गेट, काबुल गेट, फराश खाना गेट, अजमेरी गेट और तुर्कमान गेट शहर को मुख्य मार्गों से जोड़ते थे। समान सामाजिक ढांचे के अनुकूल मौहल्लों और कटरों का एक व्यवस्था विकसित की गई। शाहजहानाबाद धर्मनिरपेक्षता का एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश करता है, जो इसके बाज़ारों, अनेक ऐतिहासिक भवनों और मंदिरों से देखा जा सकता है: शाहजहां के समय का लाल जैन मंदिर, अप्पा गंगाधर मंदिर (गौरी शंकर मंदिर), मराठी प्रभुत्व वाला आर्य समाज मंदिर (दीवान हाल), बेपटिस्ट चर्च, गुरुद्वारा सीसगंज, सुनहरी मस्जिद और वेस्ट एंड टर्मिनस, फतेहपुरी मस्जिद। 9 मार्च, 1739 को नादिर शाह ने मोहम्मद शाह को पानीपत में पराजित किया और दिल्ली में प्रवेश किया। उसने यहां के निवासियों का नरसंहार किया और और मुगलों द्वारा भारत में जमा की गई शाहजहानाबाद की लगभग सम्पूर्ण दौलत ले गया। मयूर सिंहासन, अमूल्य रत्न जैसे कोहिनूर और दरिया-ए-नूर, सुंदर कलाकृतियां, हज़ारों घोड़े, ऊंट और हाथी तथा अनेक पुस्तकें और पाण्डुलिपियां वह अपने साथ यादगार के तौर पर ले गया।
अंग्रेज़ों द्वारा अपनी राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाने तक, यह शहर दक्षिण की ओर से मराठों, ईरानी सम्राट नादिर शाह तथा उत्तर की ओर से अफगान बादशाह अहमद शाह अब्दाली की आक्रमणकारी सेनाओं द्वारा उजाड़ा जाता रहा। यह सब कुछ, वस्तुतः, उस शत्रुता और षडयंत्रों के अलावा था, जिसने दिल्ली को बर्बाद किया।
तथापि, स्वतंत्रता प्राप्ति के तत्काल बाद, शाहजहानाबाद ने अपनी पुरानी शान और वैभव प्राप्त कर लिय़ा जब स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में , डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने दिनांक 5.2.1950 को चांदनी चौक एक राजकीय समारोह में भागीदारी की।