लाल कोट अथवा किला राय पिथौरा
यद्यपि अनेक वर्षों से दिल्ली एक संपन्न शहर रहा है, 11वीं शताब्दी के इस प्राचीन शहर ने आतिहासिक तथ्यों की उपलब्धता के कारण अपनी पहचान बनाई है। किला राय पिथौरा का निर्माण पृथ्वीराज चौहान, जिन्हें राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता था, द्वारा कराया गया था, वह मुस्लिम अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध हिन्दू प्रतिरोध की कथाओं के प्रसिद्ध नायक थे। पृथ्वीराज के पूर्वजों ने तोमर राजपूतों से दिल्ली को छीना था, जो दिल्ली के संस्थापक माने जाते थे। एक तोमर राजा, अनंगपाल ने दिल्ली में संभवत पहला नियमित रक्षा संबंधी कार्य किया था, जिसे लाल कोट कहा गया - जिस पर पृथ्वीराज ने कब्जा किया उसका अपने शहर किला राय पिथौरा तक विस्तार किया। इस किले की प्राचीरों के खंडहर अभी भी कुतुब मीनार के आसपास के क्षेत्र में आंशिक रूप से देखे जा सकते हैं। तोमर और चौहान वंश के काल में दिल्ली में मंदिरों का निर्माण हुआ। यह माना जाता है कि कुववत-उल-इस्लाम मस्जिद और कुतुब मीनार के परिसर में सत्ताइस हिन्दू मंदिरों के अवशेष मौजूद हैं। महरौली स्थित लौह स्तम्भ जंग लगे बिना विभिन्न संघर्षों का मूक गवाह रहा है और राजपूत वंश के गौरव और समृद्धि को कहानी बयान करता है। लौह स्तम्भ यद्यपि मूलतः कुतुब परिसर का नहीं है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह किसी अन्य स्थान से यहां लाया गया था, संभवतः तोमर राजा, अनंगपाल-II इसे मध्य भारत के उदयगीरी नामक स्थान से लाए थे। राय पिथौरा के अवशेष अभी भी दिल्ली के साकेत, महरौली, किशनगढ़ और वसंत कुंज क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं।