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इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं इंजीनियरिंग

 

इंजीनियरिंग विंग के प्रारंभ होने और उसकी कार्यप्रणाली का संक्षिप्त विवरण


डीटीटीडीसी लिमिटेड का इंजीनियरिंग विंग वर्ष 1989  में शुरु किया गया था, उसी समय 1989  में डीटीटीडीसी को कंट्री लिक्वर की बिक्री का काम सौंपा गया था। दिल्ली सरकार की एक नीति के रूप में,  कंट्री लिक्वर की प्रत्येक बोतल की बिक्री से रु. की राशि 'ट्रांसपोर्टेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर यूटिलाइजेशन फंड अर्थात् टीआईएफयू' को दी जाती थी। इस फंड का उपयोग दिल्ली राज्य में विभिन्न परिवहन संबंधी मूलभूत परियोजनाओं जैसे फ्लाईओवर, अंडरपास और सबवे आदि के लिए किया जाना था।

 

इसके अतिरिक्त, इंजीनियरिंग  विंग दिल्ली पर्यटन की विभिन्न महत्वपूर्ण परियोजनाओं के निर्माण के लिए भी जिम्मेदार था, जिनके लिए धन की व्यवस्था डीटीटीडीसी के अपने स्रोतों से, स्रोतों द्वारा प्राप्त आमदनी से और अनुदान सहायता आदि से की जाती थी।

वर्ष 2006-07 में दिल्ली सरकार द्वारा डीटीटीडीसी लिमिटेड से टीआईयूएफ को वापस ले लिया गया और उसके बाद मूलभूत ढांचे संबंधी तथा अन्य सरकारी परियोजनाएं डिपॉजिट वर्क आधार पर डीटीटीडीसी लिमिटेड को आबंटित की गईं। ऐसी परियोजनाओं के लिए निधि की व्यवस्था दिल्ली सरकार द्वारा की गई डीटीटीडीसी लिमिटेड को उक्त परियोजनाओं पर हुए व्यय की 5%  राशि विभागीय प्रभार के रूप में प्राप्त हो रही है।

 

इंजीनियरिंग विंग के प्रमुख अधिकारी मुख्य इंजीनियर हैं और सेक्शन इंजीनियर, कार्यकारी इंजीनियर और सहायक इंजीनियर उनके अधीन कार्यरत हैं, जिनकी संख्या चल रही परियोजनाओं पर आधारित होती है। इसके अतिरिक्त मुख्य इंजीनियर कार्यालय के साथ के लेखा शाखा और स्थापना अनुभाग काम करता है। लेखा अधिकारियों को छोड़कर सभी इंजीनियर और लेखा विभाग के अधिकारी केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग से प्रतिनियुक्ति पर लिए जाते हैं, जबकि लेखा अधिकारी महालेखा निदेशक कार्यालय (सीजीएएस संगठन) से प्रतिनियुक्ति पर लिए जाते हैं। प्रशासन / स्थापना के अधिकारी एवं कर्मचारी डीटीटीडीसी  द्वारा अपने स्वीकृत पदों में से उपलब्ध करे जाते हैं।

 

ऐसे सभी कार्यों, जो मुख्य इंजीनियर के प्राधिकार के अंतर्गत नहीं आते, जिनके लिए निदेशक मंडल द्वारा विचार करके अनुमोदन प्रदान किया जाता है, को आरंभ करने के लिए केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग की नियमावली का अनुपालन किया जाता है। परिवहन संबंधी कार्यों के लिए निदेशक मंडल को एक परामर्शदात्री समिति से दिशानिर्देश मिलते हैं, जिसका गठन दिल्ली के माननीय उपराज्यपाल द्वारा किया जाता है।