दिल्ली का इतिहास
"Once there was nothing here.
Now look how minarets camouflage the sunset.
Do you hear the call to prayer?
It leaves me unwinding scrolls of legend
till I reach the first brick they brought here.
How the prayers rose, brick by brick?"
--Agha Shahid Ali
भारत की राजधानी, दिल्ली की सशक्त ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। यहां भारतीय इतिहास के कुछ सर्वाधिक शक्तिशाली सम्राटों ने शासन किया था।
शहर का इतिहास महाभारत के जितना ही पुराना है। इस शहर को इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था, जहां कभी पांडव रहे थे। समय के साथ-साथ इंद्रप्रस्थ के आसपास आठ शहर : लाल कोट, दीनपनाह, किला राय पिथौरा, फिरोज़ाबाद, जहांपनाह, तुगलकाबाद और शाहजहानाबाद बसते रहे।
पांच शताब्दियों से भी अधिक समय से दिल्ली राजनीतिक उथल-पुथल की गवाह रही है। यहां खिलजी और तुगलक वंशों के बाद मुग़लों ने शान किया।
वर्ष 1192 में अफगान योद्धा मोहम्मद गौरी ने राजपूतों के शहर पर कब्जा किया 1206 में दिल्ली सल्तनत की नींव रखी। 1398 में दिल्ली पर तैमूर के हमले ने सल्तनत का खात्मा किया; लोधी, जो दिल्ली के अंतिम सुल्तान साबित हुए के बाद बाबर ने सत्ता संभाली, जिसने 1526 में पानीपत की लड़ाई के बाद मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की। आरंभिक मुग़ल शासकों ने आगरा को अपनी राजधानी बनाया और दिल्ली शाहजहां द्वारा पुरानी दिल्ली की दीवार के निर्माण (1638) के बाद ही यह शहर उनकी स्थायी गद्दी बन पाया।
हिन्दू राजाओं से लेकर मुस्लिं सुल्तानों तक, दिल्ली का शासन एक शासक से दूसरे शासक के हाथों जाता रहा। शहर की मिट्टी खून, कुर्बानी और देश-प्रेम से सींची हुई है। प्राचीन काल से ही पुरानी 'हवेलियां' और इमारतें खामोश खड़ी हैं किन्तु उनका खामोशियां अपने मालिकों और उन लोगों को सदाएं देती हैं जो सैंकड़ों वर्षों पहले उनमें रहे थे।
1803 ई. में शहर पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। वर्ष 1911 में, अंग्रेजों ने कलकत्ता से बदलकर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। यह शहर पुनः शासकीय गतिविधियों का केन्द्र बन गया। किन्तु, शहर की प्रतिष्ठा है कि वह अपनी गद्दी पर बैठने वालों को बदलती रहा है। इनमें ब्रिटिश और वे वर्तमान राजनीतिक पार्टियां भी शामिल हैं, जिन्हें स्वतंत्र भारत का नेतृत्व करने का गौरव हासिल हुआ है।
1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, नई दिल्ली को अधिकारिक तौर पर भारत की राजधानी घोषित किया गया।
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